तानसेन समारोह: हवाईन गिटार और सारंगी ने रचा सुर–साधना का दिव्य संसार

संगीत की पावन नगरी ग्वालियर में आयोजित 101वें तानसेन समारोह के दूसरे दिवस की प्रातःकालीन संगीत सभा उगते सूर्य की स्वर्णिम किरणों के साथ सुरों की आध्यात्मिक साधना में डूबी रही। शांत, सात्त्विक और अलौकिक वातावरण में जब रागों का आलाप गूँजा, तो समूचा परिसर दिव्यता और आत्मिक अनुभूति से आप्लावित हो उठा।
प्रातःकालीन सभा का शुभारंभ पारंपरिक ध्रुपद गायन से हुआ। भारतीय संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों ने राग भटियार में निबद्ध “विष्णु चरण जल, ब्रह्म कमण्डल नीर…” की प्रस्तुति देकर सभा को शास्त्रीय गरिमा से ओतप्रोत कर दिया। सधी हुई स्वरलिपि, एकाग्र भाव और संतुलित लय ने श्रोताओं को आत्मिक शांति का अनुभव कराया। पखावज संगत एवं संगीत संयोजन संजय आफले का रहा, संवादिनी पर सुश्री वर्षा मिश्रा तथा स्वर संयोजन संजय देवले ने किया।
इसके पश्चात मंच पर उपस्थित हुए पंडित सुनील पावगी (ग्वालियर)—हवाईन गिटार जैसे दुर्लभ पाश्चात्य वाद्य पर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विशिष्ट साधना करने वाले प्रतिष्ठित कलाकार। ग्वालियर एवं आगरा घराने की समृद्ध परंपरा से जुड़े पंडित पावगी ने राग बिलासखानी तोड़ी को अत्यंत भावपूर्ण और सघन अभिव्यक्ति के साथ प्रस्तुत किया। गंभीर आलाप से आरंभ कर जोड़ और झाला के माध्यम से राग का क्रमिक विकास किया, जिससे राग की करुणा और सौंदर्य गहराई से अनुभूत हुआ। झपताल और तीनताल में प्रस्तुत सधी हुई गतों ने उनकी तकनीकी दक्षता और रचनात्मक कल्पना को उजागर किया। हवाईन गिटार से प्रवाहित सुरों ने परंपरा और नवाचार का अद्भुत संगम रच दिया। अंत में राग बसंत मुखारी की धुन के साथ उन्होंने अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति को विराम दिया। तबले पर उस्ताद सलीम अल्लाहवाले तथा सह वादन में हवाईन गिटार पर साहेब सिंह ने संगत की।
प्रातःकालीन सभा की अंतिम प्रस्तुति प्रसिद्ध सारंगी वादक घनश्याम सिसौदिया (दिल्ली) की रही। मध्यप्रदेश की माटी में जन्मे और ग्वालियर घराने की परंपरा से जुड़े श्री सिसौदिया ने अपने सारंगी वादन से श्रोताओं को भावनाओं के सूक्ष्म संसार में प्रवेश कराया। तानसेन समारोह जैसे ऐतिहासिक मंच पर प्रस्तुति देते हुए उन्होंने राग मधुवंती को करुणा, मधुरता और गहन संवेदनशीलता के साथ साधा। सारंगी से निकलते मर्मस्पर्शी सुरों ने वातावरण को रसात्मक बना दिया। ताल अष्टमंगल में विस्तृत आलाप और उसके पश्चात द्रुत तीनताल की बंदिशों ने उनकी लयकारी और वादन कौशल का प्रभावशाली परिचय दिया। प्रस्तुति का समापन राग मिश्र भैरवी से हुआ। तबले पर बलराम सिसौदिया तथा सह सारंगी वादन में उनके पुत्र  कृष्णा सिसौदिया ने संगत कर प्रस्तुति को और भी सशक्त बनाया।
इस प्रकार सुरों की साधना, परंपरा की गरिमा और भावनात्मक अभिव्यक्ति से सजी यह प्रातःकालीन संगीत सभा श्रोताओं के लिए एक अविस्मरणीय, आध्यात्मिक और रसपूर्ण अनुभव बनकर स्मृतियों में अंकित हो गई।

posted by Admin
35

Advertisement

sandhyadesh
sandhyadesh
sandhyadesh
sandhyadesh
sandhyadesh
sandhyadesh
sandhyadesh
sandhyadesh
Get In Touch

Padav, Dafrin Sarai, Gwalior (M.P.)

98930-23728

sandhyadesh@gmail.com

Follow Us

© Sandhyadesh. All Rights Reserved. Developed by Ankit Singhal