शहनाई वादन, हरिकथा, मिलाद एवं चादरपोशी के साथ तानसेन समारोह शुरू



 सांध्य बेला में होगा औपचारिक शुभारंभ

ग्वालियर / भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठापूर्ण महोत्सव "तानसेन समारोह'' की  सोम वार की सुबह पारंपरिक ढंग से शुरुआत हुई। यहाँ हजीरा स्थित तानसेन समाधि स्थल पर शहनाई वादन, हरिकथा, मिलाद, चादरपोशी और कव्वाली गायन हुआ। सुर सम्राट तानसेन की स्मृति में आयोजित होने वाले तानसेन समारोह का इस साल 101वाँ वर्ष है। तानसेन समारोह का औपचारिक शुभारंभ आज सायंकाल हजीरा स्थित तानसेन समाधि परिसर में ऐतिहासिक चतुर्भुज मंदिर
 की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच पर होगा। इसी मंच पर बैठकर देश और दुनियाँ के ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधक सुर सम्राट तानसेन को स्वरांजलि अर्पित करेंगे। 
सोम वार की प्रात: बेला में तानसेन समाधि स्थल पर परंपरागत ढंग से उस्ताद मजीद खाँ एवं साथियों ने रागमय शहनाई वादन किया। इसके बाद ढोलीबुआ महाराज नाथपंथी संत श्री सच्चिदानंद नाथ जी ने संगीतमय आध्यात्मिक प्रवचन देते हुए ईश्वर और मनुष्य के रिश्तो को उजागर किया। उनके प्रवचन का सार था कि हर मनुष्य में ईश्वर विद्यमान है। हम सब ईश्वर की सन्तान है तथा ईश्वर के अंश भी हैं। सभी मतों का एक ही है संदेश है कि सभी नेकी के मार्ग पर चलें। जो झुक जाता है वही बड़ा है। उन्होंने कहा सुर ही धर्म है। जो निर्विकार भाव से गाता है वही भक्त है। ढोली बुआ महाराज ने राग " वृंदावनी सारंग" में भजन प्रस्तुत किया। भजन के बोल थे " मेरा साहिब को दिल अटका"। उन्होंने प्रिय भजन "रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम" का गायन भी किया। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न रागों में पिरोकर अन्य भजन भी गए।
ढोलीबुआ महाराज की हरिकथा के बाद मुस्लिम समुदाय से मौलाना इकबाल हुसैन कादिरी ने इस्लामी कायदे के अनुसार मिलाद शरीफ की तकरीर सुनाई। उन्होंने कहा सबसे बड़ी भक्ति मोहब्बत है। उनके द्वारा प्रस्तुत कलाम के बोल थे  " तू ही जलवानुमा है मैं नहीं हूँ"। अंत में हजरत मौहम्मद गौस व तानसेन की मजार पर राज्य सरकार की ओर से परंपरागत ढंग से चादरपोशी की गई। इससे पहले जनाब भोलू झनकार, जनाब अख्तर भाई, जनाब सोहेल खान व जनाब आरिफ मोहम्मद एवं उनके साथी कब्बाली गाते हुये चादर लेकर पहुंचे। कव्वाली के बोल थे ''खास दरबार-ए-मौहम्मद से ये आई चादर''। इसके अलावा "छाप तिलक सब छीनी रे.." व  "  कृपा करो महाराज.. " कलाम का  गायन भी किया। 
तानसेन समाधि पर परंपरागत ढंग से आयोजित हुए इस कार्यक्रम में संचालक संस्कृति विभाग श्री एन पी नामदेव,
 उस्ताद अलाउद्दीन खां कला एवं संगीत अकादमी के निदेशक श्री प्रकाश सिंह ठाकुर, ध्रुपद गुरू अभिजीत सुखदाने सहित अन्य कलारसिक, उस्ताद अलाउद्दीन खाँ कला एवं संगीत अकादमी के अधिकारी,गणमान्य नागरिक व मीडिया प्रतिनिधिगण उपस्थित थे।

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