सूफ़ियाना गायिका पद्मश्री जसपिंदर नरुला ने बिखेरे संगीत के मनमोहक रंग

ग्वालियर | सूफियाना, पंजाबी फोक व  शास्त्रीय संगीत की सुविख्यात गायिका एवं  प्रसिद्ध बॉलीवुड सिंगर पद्मश्री जसपिंदर नरूला ने जब अपनी जादुई आवाज में सूफियाना कलाम व गीत सुनाए तो श्रोता झूमने को मजबूर हो गए। उनकी गायिकी के सूफियाना अंदाज ने सुधीय रसिकों से खूब तालियाँ बजबाईं। साथ ही सुर सम्राट तानसेन की देहरी को मीठे-मीठे और मनमोहक रूहानी संगीत से निहाल कर दिया। मौका था तानसेन समारोह की पूर्व संध्या पर पूर्वरंग "गमक" के तहत यहाँ इंटक मैदान हजीरा पर सजी संगीत सभा का। 
जसपिंदर नरूला के गायन में ही नहीं बल्कि मिजाज में भी सूफियाना अंदाज साफ झलक रहा था। "सर्व मंगल मंगले.. मंगलचरण का गायन एवं पंजाबी फोक सोंग " ..अंखियाँ मिला के चन्ना." को तेज रिदम में गुनगुनाते हुए  सुश्री जसपिंदर नरूला गमक के मंच पर अवतरित हुईं। इसके बाद उन्होंने फ़िल्म विरासत का अपना गीत " जीवन साथी हम दिया  और बाती हम.. " व फ़िल्म  रेड का गीत "मुझे एक पल चैन न आबे सजना तेरे बिना.." गाकर रसिकों में जोश भर दिया।
इसी कड़ी में पंजाबी फोक से बावस्ता अपना प्रसिद्ध विरह गीत " तेरे बिन दिल नहीं लगता दिल मेरा ढोलना.."  सुनाया तो संपूर्ण प्रांगण प्रेममय हो गया। अपनी गायिकी को आगे बढ़ाते हुए जसपिंदर जी ने पंजाबी लोकधुन में पिरोकर जब सूफियाना जुगनी पेश की तो रसिक थिरकने को मजबूर हो गए। उन्होंने अपने सुमधुर गायन से पूरे माहौल को  रूमानी बना दिया। 
इसी बीच उन्होंने लोकप्रिय सूफियाना कलाम " पिया रे पिया रे, थारे बिन लागे नाहीं मेरा जिया रे.. " बुलंद आवाज में गाया तो रसिक रूहानी संगीत से सराबोर हो गए।  जसपिंदर जी ने इसी कड़ी में  प्रेम की मनुहार स्वरूप " सोचता हूँ वो कितने मासूम थे, क्या से क्या हो गए देखते देखते "  पेश कर समा बांध दिया।
जैसे जैसे रात परवान चढ़ रही थी वैसे वैसे जसपिंदर जी की गायिकी का सुरूर भी रसिकों के सिर चढ़कर बोल रहा था। अपनी गायिकी को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने. प्रसिद्ध कव्वाली " तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी ..." का लाजवाब गायन किया। इस कलाम की प्रस्तुति में संगीत की नगरी ग्वालियर के सुधीय रसिकों की संगत गज़ब की रही। रसिकों पर संगीत का खुमार चढ़ा तो जसपिंदर जिस ने " किन्ना सोणा तेने रब ने बनाया.. " गाकर  ठेठ पंजाबी गायकी की खुशुबू बिखेर दी। इसके बाद सूफियाना कलामों की झड़ी लगा दी।  खासतौर पर ख्यातिनाम सूफियाना गायक जनाब नुसरत फतह अली खान द्वारा गए गए   " आफरी आफरी.. " व "मेरे रश्के कमर.." जैसे कलाम तेज रिदम में प्रस्तुत कर उन्होंने सभी को रोमांचित कर दिया। 
इसी कड़ी में उन्होंने  प्रसिद्धि  कलाम  '' .ये जो हलका हलका सुरूर है, कि शराब पीना सिखा दिया है " गाकर रसिकों को मदहोश कर दिया। जसपिंदर जी ने ने रसिकों के दिल की सुनकर " दमादम मस्त कलंदर.. " सहित एक से बढ़कर एक कलाम पेश किए।  सूफियाना, रुमानी व प्रेम- विरह संगीत की यह रंगीन शाम ग्वालियर के सुधीय रसिक जन लम्बे समय तक भुला नहीं पायेंगे। 
पद्मश्री जसपिंदर नरूला के गायन में की-बोर्ड पर सतीश कुमार व फारूक, ड्रम पर नीरज, बेस  गिटार पर अंकित,  ढोलक  व ढ़ोल पर सोनू कश्यप, तबले पर गुरविंदर सिंह भोला एवं ओक्टोपेड पर संजय कुमार ने लाजवाब संगत की। नेपथ्य ध्वनि (कोरस) भानु, अंकित व सुश्री कृतिका की रही। 
आरंभ में पद्मश्री जसपिंदर नरूला, उच्च न्यायलय खंडपीठ ग्वालियर के न्यायमूर्ति श्री राजेश गुप्ता, प्रधान जिला  न्यायाधीश श्री ललित किशोर एवं संभागीय आयुक्त मनोज खत्री सहित  अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर गमक की सभा का शुभारंभ किया। इस संगीतमय रूहानी शाम की कलेक्टर श्रीमती रुचिका चौहान, नगर निगम आयुक्त संघ प्रिय  व संचालक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक प्रकाश सिंह ठाकुर एवं आयोजन समिति के अन्य सदस्यगण एवं बड़ी संख्या में संगीत रसिक साक्षी बने ।  कार्यक्रम का संचालन अशोक आनंद ने किया।

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