रोग मुक्ति एवं बेहतर स्वास्थ्य में नर्सेज का योगदान सराहनीय

* कोरोना काल में भी नर्सेज ने निभाई थी शानदार भूमिका, चिकित्सकों के साथ मिलकर स्वस्थ दुनिया का निर्माण
-प्रदीप कुमार वर्मा
विश्व युद्ध की विभीषिका। देश और दुनिया के अस्पतालों में रोगियों की देखभाल। कोरोना काल में लोगों का जीवन बचाने की जंग। या फिर राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के साथ अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति समर्पण। इन सब के पीछे जो एक चेहरा दिखाई पड़ता है वह है "नर्सेज" का चेहरा। बीते कई सालों से पीड़ित मानवता तथा विश्व समुदाय को रोगों से बचाने की मुहिम में नर्सेज जी जान जुटे हुए हैं। आज अंतरराष्ट्रीय नर्सेज दिवस पूरी दुनिया में अस्पतालों में काम करने वाली नर्सों के योगदान का सम्मान करने के लिए एक खास दिन है। हर साल  12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल की जयंती पर नर्सेज दिवस मनाया जाता है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक ब्रिटिश नर्स और समाज सुधारक थी, जिन्होंने हेल्थ के क्षेत्र में सुधार के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी थी। आज नर्सेज चिकित्सक के साथ मिलकर स्वस्थ दुनिया के निर्माण में समर्पित भाव से जुटे हैं और उनका योगदान सराहनीय है।
      किसी बीमारी से उबरने में जितना बड़ा योगदान दवाओं और इलाज का होता है, उतना ही सही देखभाल का भी होता है। इसमें चिकित्सकों से कहीं बड़ी जिम्मेदारी नर्सेज निभाती हैं, जो 24 घंटे मरीज की देखरेख में लगी रहती हैं। इन्हें सम्मान देने के मकसद से दुनियाभर में हर साल 12 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल 'नर्स दिवस' को मनाने का प्रस्ताव पहली बार अमेरिका के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण विभाग के अधिकारी 'डोरोथी सदरलैंड' ने दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डीडी आइजनहावर ने इसे मनाने की मान्यता प्रदान की। इस दिवस को पहली बार वर्ष 1953 में मनाया गया। बताते चलें कि 12 मई 1820 को फ्लोरेंस इटली में जन्मी फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक ब्रिटिश नर्स और समाज सुधारक थीं। वह यूरोप में क्रीमिया युद्ध  के दौरान घायल ब्रिटिश और मित्र देशों के सैनिकों की देखभाल के लिए  तुर्किये में स्थापित शिविर की प्रभारी थीं। 
        वह घायल सैनिकों की व्यक्तिगत देखभाल करती थीं। रात में भी वह लैंप लेकर ड्यूटी पर तैनात रहती थीं। इसलिए उन्हें "लेडी विद द लैंप" भी कहा जाता है। युद्ध के बाद 1860 में लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल में विश्व का पहला आधुनिक नर्सिंग स्कूल नाइटिंगेल स्कूल ऑफ नर्सिंग की स्थापना की गई थी। इस आधुनिक नर्सिंग स्कूल की स्थापना का श्रेय फ्लोरेंस नाइटिंगेल को ही दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय नर्सेज दिवस नर्सों के महत्व और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करने के लिए मनाया जाता है। स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की रीढ़ होने के बावजूद, नर्सों के महत्व को समुदाय द्वारा महत्व नहीं दिया जाता और न ही सराहा जाता है। इसी धारणा को बदलने के लिए अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस का आयोजन किया जाता है। इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेज की तरफ से इस खास दिन को चुना गया था और वर्ष 1974 से आधिकारिक रूप से इसे मनाया जा रहा है। 
           आज के दौर में दुनिया भर के कई क्षेत्रों में योग्य नर्सों की मांग बढ़ रही है।  कोविड-19 महामारी के दौरान नर्सिंग की कमी देखी गई। इस महामारी के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े नर्सों ने अग्रिम मोर्चे पर काम किया। उन्होंने ना केवल मरीजों का इलाज किया। इसके साथ-साथ उन्हें वायरस के बारे में शिक्षित किया। उनके संपर्कों का पता लगाया और स्व-अलगाव संबंधी मार्गदर्शन भी दिया। महामारी के बाद नर्सों की भूमिका जटिल होती जा रही है। आज चिकित्सकों के साथ-साथ रोगियों को उपचार देने के अलावा उनकी काउंसलिंग करने में भी नर्सों का विशिष्ट योगदान है। नर्सें समुदायों को शिक्षित करने, रणनीतियों को लागू करने, कार्यक्रमों की निगरानी करने और मामले की खोज, उपचार और रिपोर्टिंग में भाग लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।  राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों को भारत भर के समुदायों में स्वास्थ्य परिणामों में सुधार और स्वास्थ्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है।
         नर्स एक मां, एक बहन के रूप में मरीजों की सेवा करती हैं। इस रिश्ते को बखूबी निभाने के कारण इन्हें सिस्टर का उपनाम दिया गया है। नर्स अपनी जान जोखिम में डालकर मरीजों का इलाज करती है। वह अपने घरों से दूर, परिवार से दूर रहकर दिन और रात अपनी ड्यूटी पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ कर रही हैं। नर्सों को इस पेशे से जुड़ी खुशियों के साथ-साथ कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती रोगियों की दुर्भाग्य बस मौत के बाद उनके परिजनों का गुस्सा और उससे जुड़ी हिंसा के रूप में सामने आया है। अक्सर यह देखने में आता है कि रोगी की मृत्यु के बाद उसके परिजन सारा गुस्सा नर्सेज पर ही उतारते हैं। इसके साथ ही यह आरोप भी लगते हैं की नर्सेज की लापरवाही से ही रोगी की मौत हुई है। नर्सिंग के व्यवसाय का सबसे बड़ा दुखद पहलू यही है की सेवा और समर्पण के बाद कई बार नर्सेज को इन झूठे आरोपों तथा पुलिस कार्यवाही का सामना तथा सामाजिक विरोध झेलना पड़ता है।
-लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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