* केंद्रीय कैबिनेट ने जाति जनगणना पर मोहर लगाई, जनगणना के साथ ही होगी जाति की गिनती
-प्रदीप कुमार वर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगवाई वाली केंद्र की एनडीए सरकार ने जाति जनगणना कराने का एलान किया है। कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स की बैठक के बाद सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक जाति जनगणना को मुख्य जनगणना में शामिल करने का बड़ा फैसला लिया गया है। देश में जाति जनगणना कराने की मांग विपक्ष लगातार करता रहा है तथा लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा बना था। केंद्र सरकार के इस एलान के बाद में विपक्ष के हाथ से जाति आधारित जनगणना करने का मुद्दा भी एक तरह से निकल गया है। केंद्र की सत्ताधारी एनडीए इसे जन भावनाओं के अनुरूप तथा कल्याणकारी योजनाओं में सभी वर्गों के शामिल होने को लेकर महत्वपूर्ण मान रही है। वहीं, राहुल गांधी की अगुवाई में विपक्ष कहना है कि केंद्र सरकार को उनकी जाति जनगणना की मांग के सामने झुकना पड़ा है। उधर,राजनीति के जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार के इस फैसले का लाभ भाजपा सहित उसके अन्य सहयोगी दलों को बिहार विधानसभा चुनाव में मिलेगा। ऐसा माना जा रहा है कि जाति जनगणना का ऐलान करके केंद्र सरकार ने बिहार की चुनावी जंग जीतने की "बिसात" भी बिछा दी है।
देश में जाति आधारित जनगणना के अतीत पर गौर करें तो पता चलता है कि आजादी से पहले जनगणना में सभी लोगों की जाति पूछी जाती थी। वर्ष 1947 में देश के आजाद होने के बाद जाति संबंधित आंकड़े इकट्ठे ना करने का फैसला लिया गया। उस समय डर यही था कि जाति पूछने से "जाति व्यवस्था" की जड़ें और गहरी होती जाएंगी। हालांकि, तब पिछड़े वर्ग के लोगों के संवर्धन और उससे संबंधित आंकड़े जुटाने के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की गिनती जारी रही। यानि देश में एससी-एसटी वर्ग के लोगों की गिनती तो होती है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के लोगों की जाति की गिनती नहीं की जाती। जातिगत जनगणना की मांग कोई नई मांग नहीं है। वर्ष 2009 से 2014 के बीच मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए-2 के शासनकाल में भी जाति आधारित जनगणना की मांग जोर-शोर से उठी थी। इसी क्रम में सरकार ने 2011 में 'सामाजिक, आर्थिक और जातिगत जनगणना' करवाई थी। लेकिन उस दौरान एकत्रित जाति संबंधी आंकडों अभी तक जारी नहीं किया गया है।
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए जाति जनगणना एक महत्वपूर्ण और उपयोगी प्रक्रिया है। जनगणना से संबंधित विशेषज्ञों के मुताबिक इससे देश की आबादी के साथ-साथ लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति से जुड़े अहम ब्योरे मिलते हैं। जनगणना के दौरान लोगों की सिर्फ गिनती ही नहीं की जाती, बल्कि उनके घर-परिवार की स्थिति, धर्म, भाषा, शिक्षा और रोजगार आदि के बारे में भी पूछा जाता है। वर्ष 2011 में हुई पिछली जनगणना में लोगों से कुल 29 सवाल पूछे गए थे, लेकिन इनमें जाति से जुड़ा प्रश्न शामिल नहीं था। अब पिछले दो-तीन सालों से कई राजनीतिक पार्टियां और संगठन जाति जनगणना करवाने की मांग कर रहे हैं, जिससे हर वर्ग और जाति की आबादी पता चल सके। विपक्ष द्वारा जाति जनगणना करने की मांग पर नरेंद्र मोदी सरकार ने 2021 में संसद में कहा था कि ओबीसी की जनगणना करने की कोई योजना नहीं है। लेकिन इसके बाद भी इसकी मांग लगातार जोर पकड़ती रही है। अब पिछले दो-तीन सालों से कई राजनीतिक पार्टियां और संगठन जाति जनगणना करवाने की मांग कर रहे हैं, जिससे हर वर्ग और जाति की आबादी पता चल सके।
हालात ऐसे रहे कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में तो "इंडिया गठबंधन" में शामिल अधिकांश दलों ने इस मांग को जोर-शोर से उठाया था। साथ ही यह ऐलान किया था कि उनकी जब सरकार आएगी तो जातिगत जनगणना होगी। लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो लगातार इस मांग को दोहराते रहे हैं। वहीं, इस फैसले को बिहार चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। अब केंद्र सरकार के ऐलान के बाद जनगणना में जाति से संबंधित सवाल भी पूछे जाएंगे जिससे जनगणना के साथ-साथ जाति जनगणना के आंकड़े भी मिल सकेंगे। इन आंकड़ों के सामने आने के बाद देश में संचालित विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का खाता जाति अनुपात में खींचा जा सकेगा। जिससे समाज में "जिसकी जितनी भागीदारी उतनी उसकी हिस्सेदारी की संकल्पना पूरी हो सकेगी। इसके साथ ही जातीय अनुपात में लोगों को लाभान्वित किया जा सकेगा। केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक संभावित तौर पर सितंबर के महीने में शुरू होने वाली जनगणना को जाति के साथ अंजाम दिया जाएगा।
इसके आंकड़े वर्ष 2026 के अंतर्गत अथवा 2027 के शुरुआत तक मिलेंगे। यहां यह भी बताना जरूरी है कि वर्ष 2011 के बाद जनगणना का कार्य नहीं हो सका है। वर्ष 2021 में प्रस्तावित जनगणना के कार्य को कोविड संक्रमण के चलते टाल दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद 246 की केंद्रीय सूची में जनगणना का विषय अंकित है और केंद्र सरकार द्वारा ही जनगणना का कार्य कराया जाता रहा है। यह अलग बात है कि कुछ राज्यों ने अपने सियासी हित साधने की खातिर "जाति संबंधी आंकड़े" सर्वे के माध्यम से जुटाए थे। लेकिन इनको गाहे-बगाहे सार्वजनिक तक नहीं किया गया था। केंद्र के ऐलान को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी कांग्रेस के दबाव एवं मांग के बाद उठाया गया कदम बता रहे हैं। वहीं,अन्य विपक्षी दल भी केंद्र सरकार द्वारा जाति जनगणना के ऐलान का " राजनीतिक श्रेय"लेने की होड़ में लगे हुए हैं।
राजनीति के माहिरों का कहना है कि आगामी विधानसभा चुनावों के चलते बिहार की राजनीति पूरी तरह जातीय समीकरणों पर टिकी है। जाति आधारित जनगणना का ऐलान करके भाजपा ने आरजेडी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस जैसे दलों का एक बड़ा चुनावी मुद्दा भाजपा ने खुद अपने पाले में ले लिया है। भाजपा यदि इसका सही तरीके से प्रचार करती है, तो उसे यादव समुदाय को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियों में बड़ी बढ़त मिल सकती है। इस कदम से भाजपा एनडीए के अपने साथी जेडीयू के साथ बेहतर तालमेल को और मजबूत कर सकती है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लंबे समय जाति जनगणना के पक्ष में हैं। पीएम नरेंद्र मोदी की अगवाई वाली केंद्र सरकार के जाति जनगणना के ऐलान के बाद अब नीतीश कुमार ज्यादा मुखरता के साथ बिहार चुनाव में प्रचार कर सकते हैं। इसके उलट इस बात की भी संभावना है कि जातियों के आंकड़े सार्वजनिक होने पर बिहार में समाज में तनाव और असंतुलन की स्थिति बन सकती है। इसके साथ ही यदि "नए जातीय आंकड़ों" के अनुसार आरक्षण की मांग उठाई जाने की संभावना भी बढ़ेगी तब केंद्र और राज्य सरकारों पर दबाव बन सकता है।
चुनावी राजनीति से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रस्तावित जनगणना के साथ ही जाति जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद केंद्र एवं बिहार सरकार को यह जानने का स्पष्ट आधार मिलेगा कि कौन-सी जाति कितनी संख्या में है और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति क्या है? इन आंकड़ों से यह स्पष्ट हो सकेगा कि किन जातियों को आरक्षण की वास्तविक आवश्यकता है और किस अनुपात में? इन आंकड़ों के आने के बाद केंद्र सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे 'सबका साथ, सबका विकास' को नया बल मिल सकता है। इसके साथ ही भाजपा ओबीसी और ईबीसी वोटर्स को सीधा संदेश दे सकती है कि वह केवल सवर्ण पार्टी नहीं रही, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में भी कदम उठा रही है। कुल मिलाकर केंद्र की एनडीए सरकार द्वारा विपक्ष की मांग पर ही सही लेकिन जाति आधारित जनगणना के ऐलान के बाद अब राजनीतिक लिहाज से "सुखद" स्थिति में है और ऐसा माना जा रहा है कि केंद्र को अपने इस कदम का सकारात्मक लाभ बिहार चुनाव में अवश्य मिलेगा।
-लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।